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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४०)


पद:-

जगत में आय नर नारी जे अपनी मृत्यु को भूलैं।

कहैं अंधे तरैं कैसे बिना सुमिरन गरभ झूलैं।

नात परिवार धन धरती सान औ मान में फूलैं।

दिवस निसि चैन नहिं मिलती बासना मारती हूलैं।४।


दोहा:-

मन चंगा जब ह्वै गयो कठरा में है गंग।

श्री रैदास के वाक्य गहि अंधे ह्वै गे चंग॥