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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२६)


पद:-

मन मजा करो हरि नाम मिला अब चोरन की क्या हस्ती है।

धुनि तेज दसा लै रूप लखौ अन्धे कहैं छाई मस्ती है।

भगि गया द्वैत नहि होय मौत सम ह्वै गो जंगल बस्ती है।

मुरशिद करि चेति के जियति तरो वरना यह माया फँसती है।४।