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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१६)


पद:-

सच्चा भक्त कहीं तन त्यागै सीधे निजपुर जाता है।

अंधे कहैं कह्यो श्री सतगुरु सार वस्तु का ज्ञाता है।

शांति दीनता प्रेम से सुमिर्यौ राम सिया का ताता है।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप रंग में माता है।४।

जियति तरा औ तारै जीवन जो ग़रीब बनि आता है।

देखै सुनै औ जानै सब कुछ निज को खूब छिपाता है॥

जहाँ रहै तहँ सब तीरथ हैं मुद मंगल का दाता है।

अटल भया विश्वास भाव तब कौन उसे बिलगाता है।८।


शेर:-

चारि ध्यान पर अजपा चार। चारेउ पर विज्ञान हैं चारि।

सतगुरु कह्यौ लीन उर धारि। अंधे कहैं मिल्यो सुखसार॥