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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(३)


चौपाई:-

कहु जग काहि न व्यापी माया। चिंता साँपिनि काहि न खाया॥

सतगुरु करि सुमिरन मन लाया। माया चिन्ता मारि भगाया॥

ध्यान प्रकाश समाधि में धाया। कठिन कुअँक को जियति मिटाया॥

हर शै से धुनि नाम कि पाया। सन्मुख राम सिया छबि छाया॥

सुर मुनि मिलैं लिपटि उर लाया। अनहद सुनि अमृत को पाया।५।

नागिनि जगी चक्र घुमराया। चौदह लोक घूमि फिरि आया॥

सातौं कमलन उलटि खिलाया। विविधि भाँति की खुसबू पाया॥

तन छूटा साकेत सिधाया। राम रूप ह्वै बैठक पाया॥

तुलसीदास ने सत्य सुनाया। कोटिन में कोइ यह पद पाया॥

शांति दीनता से मथु काया। अंधे कहैं करैं प्रभु दाया।१०।


शेर:-

करै सतगुरु भजन जानै बड़ा आनंद आता है।

कहैं अंधे वही मानै जो प्रभु के रंग में माता है॥