४४६ ॥ श्री गोरे शाह जी ॥
पद:-
भजि लेहु नाम तन मन को जोरि करवावत काहे कुल कीखोरि।१।
सतगुरु करि दीजै शब्द डोरि, छूटै तब मैं-तैं मोरि तोरि।२।
अनहद सुनि अमृत पान करो, सुर मुनि भेटैं ह्वै थोरि थोरि।३।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो, सिया राम को निरखौ श्याम गौरि।४।