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४४५ ॥ श्री फकीरे शाह जी ॥


पद:-

सतगुरु से सुमिरन बिधि लैकर जियतै काया सुफ़ल बना ले।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि श्याम प्रिया को सन्मुख छाले।

मधुर मधुर अनहद धुनि सुनि सुनि अमृत टपकै गगन रो पाले।

सुर मुनि के संग नाना बिधि के, हरि के चरित मनोहर गाले।

नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातौं कमलन उलटि खिला ले।५।

पूरन काम होंय दोनो दिसि जै जै कार कि ढोल बजाले।

अन्त त्यागि तन चलि निज धाम में आवागमन के खेल मिटा ले।

कहैं फकीरे शाह फिकिर क्या मन को भक्तों जो अपना ले।८।


दोहा:-

स्वामी रामानन्द जी, संख को देंय बजाय।१।

जो जावै जेहि कार्य हित, सो तुरतै ह्वै जाय।२।

ऐसे गुरु का शिष्य मैं, नाम फकीरे शाह।३।

मुसलमान घर जन्म भा, पायो निजपुर राह।४।