४३९ ॥ श्री अजब शाह जी ॥
पद:-
लखौ नित सन्मुख जनक जमाई।
संग बहू श्री दशरथ जी की शोभा वरनि न जाई।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय सुधि बुधि जहां भुलाई।
अमृत पिओ सुनो घट अनहद बाजत बिमल बधाई।
सुर मुनि आय उर लावैं संघ में लेंय बिठाई।५।
नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातौं कमल फुलाई।
उड़ैं तरंग बोलि नहिं फूटै नैन नीर झरि लाई।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ अजब शाह कहैं गाई।८।