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४२७ ॥ श्री दुलारे शाह जी॥


पद:-

न तुम हमारे न हम तुम्हारे , प्रभू के द्वारे वही सुखारे।

गुरु के मारे सदा सुतारे, विधि लेख टारे वही सुखारे।

धुनि ध्यान धारे लय तेज ढारे लखैं मुरारे वही सुखारे।

नागिन जगा रे चक्कर घुमा रे कमल खिलारे वही सुखारे।

अमी पिया रे अनहद सुना रे सुर मुनि भेंटारे वही सुखारे।५।

जे उर में डारे वही करारे सहारे वही सुखारे।

जिन्हें सकारे उन्हें सुधारे परम पियारे वही सुखारे।

कहैं दुलार बचन पुकारे जियति लखारे वही सुखारे।८।