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४२८ ॥ श्री चित्र गुप्त दास उर्फ गुमान सिंह ॥

दोहा:-

चित्र गुप्त को सिद्ध है, राम नाम सुख सार।

या से सब जीवन लिखैं, मन में जौन बिचार॥

 

चौपाई:-

दूसर रूप धरे भगवाना। लक्ष्मी जी ने कीन्ह बखाना॥

करमन की गति लिखि बतलाना। उस हिसाब से दुख सुख पाना॥

तिल तिल लिखत हिसाब महाना। देखत सुनत सृष्टि का ज्ञाना॥

विधि शारदा शेष शिव जाना। हनुमत गण पति ज्ञान निधाना॥

सुर मुनि कोइ कोइ इन ते जाना। भेद जानि के मन हरषाना।१०।

 

जै जै जै प्रभु कृपा निधाना। अस कह करत सबै गुण गाना॥

सुमिरन करत धऱत है ध्याना। धूप दीप नै वेद्य लगाना॥

करि आरती अस्तुती ठाना। करि प्रणाम हों अंतर ध्याना।१६।

 

दोहा:-

चित्र गुप्त की होत है, प्रति दिन सेवा मान।

कह गुमान सिह सत्य हैं, धरि कै देखौ ध्यान॥