४०१ ॥ श्री दग़ा शाह जी ॥
पद:-
सांचे जे भक्त जक्त में हैं वै प्रभु की गोद में खेलि रहै।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जाना दुख सुख को सम कर झेलि रहै।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधि मिली जहं सारी सुधि बुधि मेल रहै।
सुर मुनि के संग करैं कीर्तन आनन्द के रेला रेलि रहै।
जिनके नहिं आंखी कान खुले पर पंचक ठेला ठेलि रहै।५।
जियतै जिन करतल नहिं कीन्हा वै चौरासी की जेलि रहै।
सब लोकन में खातिर उनकी बिधि लेख पै बेलन बेलि रहै।
यह सहजा बृत्ति कहावति है बिरलै कोई चेला चेलि रहै।
कहैं दग़ा शाह दागै गोला तन तजि साकेत में पेलि रहै।
भे अजर अमर प्रभु रंग रूप सिंहासन पर करि केलि रहै।१०।