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३९५ ॥ श्री सूरति शाह जी ॥


पद:-

शब्द में लागौ सूरति मम प्यारी।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो मानो बात हमारी।

सांकरि गल्ली अमर नगर की धीरे धीरे चलो सुकुमारी।

नागिन जगै चक्र सब घूमैं फूलैं कमल महक हो जारी।

सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद अमृत पियो भरी बहु क्यारी।५।

ध्यान धुनी परकाश दशा लै सुधि बुधि जहां बिसारी।

सिया राम की झाँकी सन्मुख हर दम तुम्हैं निहारी।

अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन बैठो भवन मँझारी।८।