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३८८ ॥ श्री बैली माई जी ॥


पद:-

सतगुरु करि जप नाम की पैली।

ध्यान प्रकाश समाधी होवै सन्मुख छैला छैली।

बंसी अधर धरे हैं कूकत सप्त स्वरन धुनि फैली।

को बरनै वो झाँकी अद्भुत देखत ही बनि ऐली।

सुर मुनि आय आय उर लावैं कहैं सिद्धि तू भैली।५।

अनहद सुनौ अमी रस चाखौ अमृत धरी है घैली।

कमल चक्र शिव शक्ती जागी सब लोकन में गैली।

अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन निज पुर को चट धैली।

इस बिधि ते जे भजन करैं ते सारे पापन खैली।

गुने नहीं तो चक्कर काटैं कहै बचन यह बैली।१०।