३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (२९)
जियति शरन औ जियति मरन औ जियति तरन सब एकै है।१।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो या में नहिं कोइ छेकै है।२।
दुख आने जाने का भारी नित तामे लगती टेकै हैं।३।
गाज़ी कह सुमिरन खुलि जावै जो बिधि लेख को मेटै है।४।
जियति शरन औ जियति मरन औ जियति तरन सब एकै है।१।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो या में नहिं कोइ छेकै है।२।
दुख आने जाने का भारी नित तामे लगती टेकै हैं।३।
गाज़ी कह सुमिरन खुलि जावै जो बिधि लेख को मेटै है।४।