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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (१०)

परम परा लै खायो भक्तों परम परा लै खायो।

पढ़ि सुनि लिखि कंठस्थ लिह्यौ करि सब को गाय रिझायो।

राम नाम को जान्यौ नाहीं, ठग्यौ न आप ठगायो।

यह धूर्ताई काम न आई, नर्क में सदन बनायो।

कर्म अनुसार हिसाब होत वहँ, जेहि बिधि जौन कमायो।५।

या से चेत करो अब सतगुरु, जौन हेतु तन पायो।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से सुनि पायो।

सिया राम हर दम रहैं सन्मुख, निरखि निरखि मुसक्यायो।

सुर मुनि मिलैं शीश कर परसैं, मन ही मन हुलसायो।

अनहद सुन्यौ अमी रस चाख्यौ हरि जस कह्यौ कहायो।१०।

नागिन जगी चक्र सब बेधैं सातों कमल फुलायो।

गाज़ी कहैं अन्त साकेतै चढ़ि सिंहासन जायो।१२।