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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (९)

श्री मद भागवत पुराण को, पढ़ै सुनै मन लाय।

ध्यान प्रकाश समाधि धुनि, रूप सामने छाय।

सुर मुनि सब के दरश हों, उर में लेंय लगाय।

कुण्डलिनी शक्ती जगै, षट चक्कर घुमरांय।

कमल खिलैं सातौं तबै, महक दसौं दिशि जाय।५।

अमृत पीजै मगन ह्वै, अनहद सुनौ बधाय।

तन छूटै हरि धाम को, चढ़ि बिमान पर जाय।

गाज़ी कह मानो सही, श्री गुरु मुख बचनाय।८।