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३५० ॥ श्री ठाकुर बावन सिंह जी ॥


पद:-

राम नाम बिधि लेख को मेटत।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै ते जियतै जग चेतत।

निज परमारथ साधि लीन जिन ते औरन दुख छेकत।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि नित प्रति सुर मुनि भेंटत।

अनहद सुनै पियै घट अमृत तन मन प्रेम में फेंटत।५।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हर दम सन्मुख देखत।

माया असुर होंय सब काबू जो जीवन को रेतत।

अन्त त्यागि तन निज पुर जावै बैठि मौन नहिं लेटत।८।