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३४८ ॥ श्री उमेश सिंह जी ॥


पद:-

हे हरि कृष्ण निधि चित चोर।१।

सुर मुनि बेद भजत निशि बासर त्रिभुवन में है शोर।२।

अधमन का शिरताज एक मैं बिनय करौं कर जोर।३।

पाप ताप भगि जावैं सारे चितवो नैन कि कोर।४।