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३१५ ॥ श्री चाखन शाही जी ॥


पद:-

भजिये कृष्ण नाम पति राखन।

सतगुरु करि जप भेद जान लो शान्ति रहौ तजि भाखन।

मन तब ठहरै दौर देय तजि घूमत गिरि बन साखन।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हरि को निरखौ आँखन।

श्री राधे नित लाय खिलावैं सिता मिलाय के माखन।

अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ सत्य बचन कहैं चाखन।६।