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३११ ॥ श्री शिव नाथ ओझा जी ॥


पद:-

वेद शास्त्र उपनिषद संहिता औ पुरान श्री रामायन।

सब में गलती अनुभव कीन्हा गीता शुद्ध है मुद दायन।

श्री बैकुण्ठ में ग्रन्थ धरे सब पढ़ि सुनि जाना हरखायन।

यहाँ वहाँ ते फर्क बड़ा है यह गुनि मन में पछितायन।

समय समय की बात है भाई प्रेम से करिहैं जे गायन।५।

ते अशुद्ध ते शुद्ध जाँय ह्वै सत्य बचन ये समुझायन।

सतयुग त्रेता द्वापर में सब कण्ठ रहत यह सुनि आयन।

तब कोई नहिं उलट पुलट हो सुर मुनि कह्यो सो बतलायन।८।