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२८८ ॥ श्री बिष्णु भगवान का गदा जी ॥


दोहा:-

गद भव का मिटि जाय तब, जब तन मन जुटि जाय।

ध्यान प्रकाश समाधि धुनि, रग रोदव खुलि जाय।

सुर मुनि के नित दर्श हों, अनहद नाद सुनाय।

सुधा पान हित जो मिलै, स्वाद कहा नहिं जाय।

नागिनि जावै जागि तब, षट चक्कर सुधि जांय।५।

कमल सातहूँ जाँय खिलि, मन्द सुगन्ध उड़ाय।

रमा बिष्णु की छवि छटा, सन्मुख जावै छाय।

गदा कहैं तब जियति ही, मुक्ति भक्ति मिलि जाय।

सतगुरु कहैं तब जियति ही, मुक्ति भक्ति मिलि जाय।

सतगुरु करि सुमिरन करै, सो या बिधि को पाय।

नाहीं तो जन्मै मरै, निज घर कैसे जाय।११।