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२८७ ॥ श्री बिष्णु भगवान का शंख ॥

दोहा:-

पंचजन्य कह पांच जब, प्राण एक ह्वै जांय।

ध्यान प्रकाश समाधि हो, नाम कि धुनि खुलि जाय।

अमी पान के हित मिलै, अनहद बिमल सुनाय।

सुर मुनि आवैं मिलन सब, उर में लेंय लगाय।

कुण्डलिनी शक्ती जगै, षट चक्कर घुमरांय।५।

 

उलटि कमल सातों खिलैं, स्वरन ते महक उड़ाय।

नारायण लक्ष्मी सहित, सन्मुख दें छबि छाय।

मुक्ति भक्ति जियतै मिलै आवागमन नशाय।

सतगुरु करि साधन करै, सो यह मारग पाय।

नाहीं तो बिरथा जनम बार बार चकराय।१०।