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२६० ॥ श्री कृष्ण भगवान की मुरली ॥

पद:-

मैं तो श्री हरि के प्रेम में पागी।

हरि बिधि हर ने मोहिं बनायो जे हरि के अनुरागी।

दिब्य रहौं टूटौं ना फाटौं ना कबहूँ हों दागी।

हरा रंग मम तन में शोभित सात छिद्र बड़भागी।

कबहूँ हरि के कर में राजौं कबहूँ अधर पै लागी।५।

 

कबहूँ बग़ल कबहूँ रहौं कछनी शयन शीश तरे छांगी।

विश्व तान सुनि मोहि जात सब तन मन एक में तागी।

रेखा रूप से हरि के चरन में हर दम मैं रहौं चाँगी।

हरि का नाम बीज तन ब्याप्यो सकत न नेकौं खाँगी।

ध्यान प्रकाश समाधि आय कर लें नित आशिष माँगी।१०।

 

हरि सुमिरन बिन तन जो खोवैं ते जानो भे बागी।

नर्क में पल भरि कल नहिं पावैं सहैं यमन की साँगी।

नर नारी सतगुरु करि हरि भजि जियति जाव अब जागी।

अन्त त्यागि तन हरि ढिग बैठो छूटै भव की आगी।

शांति दीनता प्रेम बिना नहिं छूटै द्वैत कि टाँगी।

चेतौ गर्भ कि बात न भूलौ भखे रहै जो हाँगी।१६।