साईट में खोजें

२५२ ॥ श्री सिद्ध बाबा जी ॥


पद:-

श्री कलियुग की राज है भाई।

शान्ति दीन बनि सतगुरु करिहै सो इनसे बचि जाई।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रोम रोम सुनि पाई।

अनहद सुनै देव मुनि भेटैं अमी पियै सुखदाई।

सिया राम प्रिय श्याम रमाहरि सन्मुख दें छबि छाई।५।

नागिन जगै चक्र षट घूमैं सातौं कमल खिलाई।

हर दम मस्त चहै तहँ डोलै सब में समता आई।

अन्त त्यागि तन राम धाम ले फेरि न जग चकराई।८।

सतयुग त्रेता द्वापरहु श्री कलि सम नहि जान।

थोड़े समय में जात मिलि मुक्ति भक्ति का दान॥

समय न मिलिहै ऐस सतगुरु करि सुमिरन करौ।

छूटै भव का रैस, चलि साकेत में पग धरौ॥