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२३५ ॥ श्री टकटकी माई जी ॥


पद:-

दुलहा श्याम राधिका दुलहिन।

निरखौ सन्मुख हो जब बिरहिन।

सतगुरु करौ गर्भ रिन छूटै होवै ध्यान समाधि नूर धुनि।

अनहद सुनो चखौ घट अमृत आय मिलैं नित सुर मुनि।

अन्त त्याग तन चलहु अचल पुर बैठि जाव तहँ बनि ठनि।

कहैं टकटकी चेतो बहिनो समुझाइत हम पुनि पुनि।६।