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१९४ ॥ श्री खरभर शाह जी ॥


पद:-

नारि पुत्र कन्या औ भगिनी। वे अंकुश जारैं जिमि अगिनी॥

प्रथमै इनको शिक्षा दीजै। तब नित बचन अमी सम लीजै॥

इस ज़बान से आदर आसन। इस ज़बान से भोजन छाजन॥

इस ज़बान से भूषन पैसा। इस ज़बान से बढ़त है रैसा॥

इस ज़बान से सहु पग दासी। इस ज़बान से हो सुख रासी।५।

इस ज़बान से नर्क को जाओ। इस ज़बान से हरि पुर धाओ॥

इस ज़बान का खेल अपारा। शारद शेष भनत हिय हारा॥

सतगुरु करै जानि कछु पावै। खरभर शाह सत्य बतलावै।८।


बार्तिक:-

पिता को सांचा और माता को सांची, पिता के पिता को बम्बा, पिता की माता को गय्या, पुत्र को बछरू पुत्री को बछरी, स्त्री पति को नकवा, पति स्त्री को नकिया, बहू को बल्ली, भगिनी को हल्ली, भाई को सग्गू, भैहो और भौजी को सग्गी, काका को बांका, काकी को बांकी, नाना को ढांचा, नानी को ढांची, मामा को खांचा, मामी को खांची, मौसिया को आंचा, मौसी को आंची, फूफा को रांचा, फूफू को रांची, फूफा के लड़के को टेरा, लड़की को टेरी, बहनोई को लग्गू, बहनोई के लड़के को मेरा, लड़की को मेरी भाई के लड़के को खोदा, ससुर को सुक्खा, सासु को सुक्खी, सारे को सब्बू, सरहज को सब्बी, दामाद को दिद्दा, दामाद के लड़के को जूजू, और लड़की को जूजी, पुत्र के लड़के को पल्ल, लड़की को पल्ली, राजा को नाथू, रानी को नाथी, गुरु को टीका, गुरुवानी को टीकी, मझवानी को ठीकू चोर को चुप्पा, डाकू को झोंका, दुश्मन को बुक्का, मित्र को हिल्ला, नाऊ को नक्का, धोबी को झक्का, तेली को टप्पू, तम्बोली को पच्चा, कहार को झुक्का लोहार को पित्तू, बढ़ई को छीलू, सुनार को फुक्का, मेहतर को साहू, राम को सर्वा, आकाश को देखू अग्नि को लप्पी, हवा को वाह, पानी को फीका, धरनी को सीधी, अन्न को मौजी, हंसी

को हाहू, रोने को हूँ हूँ, भुरजी को हल्ला, चमार को चाहू, पासी को अंग, कोरी को कोसा, बहना को धुक्का,कुम्हार को खूंदा,मुराई को लाया, चलने को फर फर, बैठने को कील, उठने को हील, गिरने को ढील, सीने को लील, मारने को छर छर,काटने को कर कर, दानी के देबू, कपड़े को छाजन, भूषन को जोहर, बदचलन पुरुष को दुरदुरा, बदचलन औरत को दुरदुरी, नंगे पुरुष को चूका, नंगी नारि को चूकी, मुर्दा को चालू, गर्भ को हालू, जन्म लेने को खालू, स्त्री पुरुष के बिहार को पीलू, स्त्री के स्तनों को गुल्पुल, दूध को हप्पा, घी को चीकस, दही को वांधा, माठा को धारा, मल को फट, मूत्र को सर, साह को लाहू, ग्राम को बाना, लड़ाई को ताना, खाने को आना, बनाने को घाना, परसने को जाना, चुराने को हाना, अस्त्र को माना, ग्राम के पशुओं को पैकू, पक्षिन को हैकू, जल जीवन को साफू, जंगली जानवरों को हौजी, छोटे छोटे कीड़ों को झीनू सांपों को बढुवा, बीछी को नाची, कुत्ते को फहरु, ग्राम की रात्रि में रखवाली करने वाले को पूका, जागने को धूपा, विद्या को हेली, भूख को आई, प्यास को पाई, साधू को तक्का, और चेला होने को खुल्ला, फलों को रफ़ा, फूलों को सफा, तोड़ने को दफ़ा बृक्ष को सीधा, सूखी लकड़ी को झूट

, चक्की को गाड़ी, बृक्ष के पत्तों को दाता, जल में तैरने को कभकभ, नेत्र मूँदने को टप, गोता लगाने को हप पुकारने को कूकू, इशारा देने को सूसू, झाड़ फूक को ठू ठू, वश करने को मूमू, उच्चाटन को घूँघूँ, आकर्षन को ऊ ऊ, स्तम्भन को रु रु, मारन को चू चू, मोहन को लू लू, धूप को लागी, छांह को भागी, डण्ड को पट, बैठक को खट, कुशती लड़ने को जुट, हारने को कट, जीतने को अट, पहलवान को नट, धन को हा हा, गाड़ने को खाँ खाँ वायु खुलने को खर, गुदा को चौकी, नर की इन्द्री को छूछ, स्त्री की इन्द्री को बूची, शाक को भाया, मीठा को तरी, रस्सी को सांदा घड़ा को लाया, नमक को आचा, तैल्य को चप, चिराग़ को दप, बाती को सफ़, कूप को झाक, नदी को धांधी, पहाड़ को काँगू, जंगल को आसा खेत को तूजा, बोने को माजा, जोतने को हाजा, सींचने को ईजा, निराने को ऊजू, माड़ने को गूँजू, अन्न ढोने को बूतू, बेंचने को देला, खरीदने को रेला, पीसने को फेला, चालने को झेला, पछोरने को खेला, अन्न से भूसा उड़ाने को गौ गौ, निमंत्रण को हौ हौ, खाने को हूँदू, पोतने को आला, बहारने को बर बर झाड़ू को चाल, मिट्टी को खाल, आराम करने को ऐला कहते हैं।


शेर:-

इदा गद्द यम करेंगे बांधि नर्क ले जावैं।

सतगुरु किया न हरि को भजा सुक्ख किमि पावैं।१।

दुनियावी ऐश करके बृथा वक्त गँवाया।

खर भर कहैं निज कुल में हाय दाग लगाया।२।