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१९५ ॥ श्री भर भर शाह जी ॥

पद:-

तत्ववेता जाव बनि जियतै में भव से पार हो।

सतगुरु करो पावो पता काहे यह तन बेकार हो।

ब्रह्म विद्या है यही सूरत शबद में ढार हो।

परकाश ध्यान समाधि धुनि खुलि जांय तब रंकार हो।

सुर मुनि मिलैं अनहद सुनो घट में मधुर गुमकार हो।५।

 

झूलो हिंडोला है पड़ा क्या अर्द्ध ऊर्द्ध मंझार हो।

छटा छबि श्रृंगार सन्मुख लखौ श्री सरकार हो।

जिस दिन चहौ उस दिन पहुँच देखौ सुघर दरबार हो।

शोभा वहां की को कहै हिय शेष शारद हार हो।

काम रति के रूप रंग के तहँ बहुत रखवार हो।१०।

 

अस्नान सब तीरथ करौ सब लोकों का दीदार हो।

नागिनी माता जगै वा हित ये सब खेलवार हो।

चक्र षट....... तुरंत तयार हो।

स्वांस सुखमन जाय ह्वै मारग बिहंग सुख सार हो।

अन्त तन तजि अचल पुर जावो वहाँ अति प्यार हो।

भर भर कहैं चेतो अभी वरना ये तन दुश्वार हो।१५।