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१८७ ॥ श्री ठाकुर राम सकल सिंह जी ॥


पद:-

मल मूत्र हाड़ माँस चाम रक्त और मज्जा।

यह तन बना गुनो तो करत शौक औ लज्जा॥

यम अन्त अन्धे घोड़े शिर देंय करि गंजा॥

हरि नाम अमी छोड़ कर फल खा रहे कंजा॥