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१८६ ॥ श्री ठाकुर धर्मसिंह जी ॥


पद:-

कमला कामिनि कलम किताब। दुष्ट संग परि हों बेताब।१।

दया धरम जिनमें हो आब। तिन ढिग गये न बिगड़ै ताब।२।


दोहा:-

सब में समता जो लखैं, सो हैं चतुर सुजान।

सो चारिउ को प्रेम से, राखै करि सन्मान॥