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१४५ ॥ श्री हल्लर शाह जी ॥


पद:-

कर रगर झगर खाते चटर पटर

चलैं लचर पचर रहिगे काका।

भई पकर धकर करैं हकर सकर

यम अकर डकर मारैं भटर पटर रहिगे काका।

रोवैं भकर ढकर ताकैं चकर मकर

कांपैं हलर थलर धरिगे काका।

तजि अगर मगर चलि सुघर डगर

उड़ी खटर सटर फिरिगे काका।४।


शेर:-

तन मन में है गजर बजर कैसे भजन करैं।

काटैं लटर पटर में दिन जग जन्म फिरि मरैं॥