१४२ ॥ श्री नगीना शाह जी ॥
पद:-
राम नाम जे जानन हारे। तिनकी लीला अगम अपारे॥
ध्यान धुनी लय नूर संभारे। सन्मुख राम सिया सुख सारे॥
सुर मुनि जिनके हैं रखवारे। ज्ञान बिराग जोग गुन प्यारे॥
मुक्ति भक्ति जप तप औ दाया। श्रद्धा शील संग दुलरारे॥
शान्ति सत्य ब्रत नेम टेम मिलि। चारों ओर से शिर कर धारे।५।
रिद्धि सिद्धि पैकरमा करतीं। तीर्थ रोम रोम भरि डारे॥
क्षमा प्रेम संतोष दीनता। तन मन सब उन पर हैं वारे॥
असुरन को मरदन करि जियतै। निर्भय सिंह समान पुकारे॥
कहत नगीना शाह मरै सो। सतगुरु शब्द बान जेहि मारे॥
नाही तो फिरि नर्क में चलिके हरदम हाय हाय चिल्लारे।१०।
शेर:-
सूरति लगै तब होय सुमिरन कह नगीना शाह जी।
नाहीं तो सब बेकार है मिलिहै न हरगिज़ राह जी॥