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१३८ ॥ श्री पिलपिली शाह जी ॥

बिन समुझे जे कथैं ज्ञान को सूझे आव न ताउ।

उनकी गती कहां से होवै सब झूँठा है दांउ।

जैसे भूख नहीं है नेकौं कहे आय कोइ खाउ।

उत्तम अन्न होय विष छिन में शिथिल हाथ औ पांउ।

जैसे मन में नहिं हुलास है कहै आय कोइ गाउ।

गान तान सम लय नहिं बनिहै बिना बताये भाउ।६।

जैसे भूखा भोजन मांगै डाटौ तुम हटि जाउ।

सारे सुकृत नास हों छिन में फिरि पीछे पछिताउ।

सतगुरु करि हरि नाम को जानो तन मन प्रेम लगाउ।

यह तन समझौ ओस क मोती पौन चलै ढुरि जाउ।

ईश्वर अंश कहाय के चूकत गर्भ क कर्ज चुकाउ।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय रूप सामने छाउ।१२।

सुर मुनि के नित दर्शन होवैं हर्षि हर्षि बतलाउ।

अनहद बाजै हर दम सुनिये आप में आप सिहाउ।

सबै पदारथ पास में भाई जो यहि मारग आउ।

कहैं पिलपिली शाह जियति में भव बारिधि तरि जाउ।१६।