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१३७ ॥ श्री सर्वजीत सिंह जी ॥


पद:-

राधे पति अर्ज सुनो मेरी। अब काटौ आय नाथ बेरी॥

सब दुष्टन मिलि मो को घेरी। कर लीन जबरदस्ती चेरी॥

मति मेरी ऐसी है फेरी। अधरम करना हरदम हेरी॥

तन मन ते तो तोषा यह गेरी। ह्वै गई खूब भारी ढेरी।५।

था सिंह प्रथम भा अब छेरी। अब कीजै नाथ न कछु देरी॥

इन असुरन को कैसे पेरी। कह दीजै नैन सैन हेरी॥

जिन जिन हरि आप को है टेरी। करि दीन सुखी बाजी भेरी॥

जे भूलैं नहीं सुधि हरि केरी। कह सर्ब जीत धनि धनि तेरी।८।