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९६ ॥ श्री अलहुब्ब अली जी ॥


पद:-

क्या साजे भूषण बसन श्याम नन्द लाला।

नित प्रति दर्शन हैं देत संघ प्रिय बाला।

जब मुरली देत बजाय सुनो अहवाला।

तन मन सुधि जाय भुलाय होहु मतवाला।

नूपुर धुनि नाचत समै बजै क्या आला।५।

दामिनि सम दमकै प्रिय प्रीतम दै ताला।

नैनों की सैन चलाय हाथ धरि भाला।

क्या कटि खमीद करि देत बाँसुरी वाला।

गावत जब राग अलापि कहै को हाला।

सब सुर मुनि लखि लखि नभ ते फेंकत माला।१०।

क्या ताल ग्राम स्वर धुनि सम साज निराला।

धरि दिब्य देह निज निज कामन पर ख्याला।

छा राग छतीसौ रागिन प्रगटत हाला।

संग में सोहत परिवार रूप रंग आला।

नाना बिधि लखि लखि खेल जिगर भा पाला।१५।

मुरशिद करि पीजै अनुपम नाम क प्याला।

मिटि जाय करम गति बिधि ने लिखी जो भाला।

धुनि ध्यान नूर लै होय मिलै सुख साला।

अनहद सुनिये नहि हद्द मधुर धुनि आला।

सन्मुख हों श्यामा श्याम हरै मन चाला।२०।

जिन तुमको उत्पति करि के बहु बिधि पाला।

तन मन प्रेम से लागि जाव तजि गाला।

सुर मुनि सब दर्शन देंय सुफ़ल हो छाला।

बनि जावो सांचे मात पिता के लाला।

सूरति शब्द पै धरि के करिये ख्याला।२५।

जियतै में तै होय मिटै जग जाला।

अलहुब्ब अली कहैं मानो बचन रसाला।

नहि अन्त समै में दोज़ख जैहो डाला।२८।


दोहा:-

स्वामी रामानन्द का चेला हूँ मैं जान।

अलहुब्ब अली मम नाम है, सत्य लीजिये मान॥