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९५ ॥ श्री भानू दास जी ॥


पद:-

ब्रज में क्या वंशी बाजै सुनो जसुदा नन्द लाल मनोहर की।

सुख सागर की गुण आगर की राधेबर की सर्वेश्वर की।

सतगुरु करि तन मन प्रेम करो तब बाट लखौ अपने घर की।

धुनि ध्यान समाधि प्रकाश मिलै छबि हरदम सन्मुख प्रिय हरि की।४।

सुर मुनि सब आय के दें दर्शन यह जाप अहै बिधि हरि हर की।

उनमुनी बैठि सूरति लगाय सुनु शब्द ब्रह्म टूटै फरकी।

चित करि एकाग्र तज चन्द्र सूर्य सुखमन में जावो चट ग़रकी।

कहते हैं भानु दास जियति तरि जावो देर न पल भर की।८।