साईट में खोजें

८६ ॥ श्री बुक्काराय जी ॥


पद:-

करो सतगुरु फते गढ़ हो बजै डंका कुङुम धुम तब।

सुरति को शब्द पर धरिहो बजै डंका कुङुम धुम तब।

ध्यान धुनि नूर औ लै हो बजै डंका कुङुम धुम तब।

देव मुनि संग खेलैं हो बजै डंका कुङुम धुम तब।

कर्म शुभ अशुभ का छय हो बजै डंका कुङुम धुम तब।

सदा निर्बैर निर्भय हो बजै डंका कुङुम धुम तब।६।

सामने श्याम श्यामा हों बजै डंका कुङुम धुम तब।

अन्त चलने पै जै जै हो बजै डंका कुङुम धुम तब।

छुटै संसार खैं खैं बजै डंका कुङुम धुम तब।

सुनो अनहद मधुर धुनि हो बजै डंका कुङुम धुम तब।

मधुर बाणी से बोलैं हो बजै डंका कुङुम धुम तब।

ख्याल में मस्त हर दम हो बजै डंका कुङुम धुम तब।१२।


दोहा:-

स्वयं ब्रह्म जे बनत हैं, बातैं लीन्हीं सीख।

उनके पास में है नहीं, परमारथ की भीख।१।

ब्रह्म बनत घर घर फिरत, लगै न उनकी सीख।

धनवानन के पास में, खाते नीकी भीख।२।