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८५ ॥ श्री बिन्दु मती जी ॥


पद:-

छम छम छम पग नूपुर बाजत श्याम मनोहर आवत हैं रे।

कुण्डल क्रीट बसन औ भूषण चम चम चमकावत हैं रे।

ताल तान सम राग सप्त सुर मुरली माहिं सुनावत हैं रे।

छबि श्रृँगार छटा को बरनै अगणित मदन लजावत हैं रे।४।

निसि बासर सुर मुनि सब ध्यावत गावत गुण हरषावत हैं रे।

तन मन ते जे प्रेम करत जन तिनको गोद बिठावत हैं रे।

हंसि हंसि कै उनको मुख चूमत उर लगाय दुलरावत हैं रे।

बिन्दु मती कहैं सतगुरु करिये वै यह मार्ग बतावत हैं रे।८।