२९ ॥ श्री फातिया शाह जी ॥
शेर:-
हैं पांच वक्त निमाज़ के। क्या और वक्त मिज़ाज़ के॥
रोज़ा के दिन तो तीस हैं। खाली तीन सै तीस हैं॥
ईद है बकरीद है जुमेरात है सुबरात।
मुहर्रम अलविदा पर्व है करते हो जीव घात॥
मल मूत्र की मिट्टी है तुम्हरी और जिसकी खात।
कानो से बने बहिरे आंखों से नहिं दिखात।४।
जिसके न रहेम दिल में सो है नमक हराम।
है सच सखुन यह मेरा कहता हूँ खा कलाम।५।
सच्चे बनो खुदा के सब जन नमक हलाल।
मुरशिद करो और सुमिरो मिटि जाय सब मलाल।६।
फ़ातिया शाह कह मानो कभी ईमान मत छोड़ो।
निकल जब जाय दम तन से, चलो दुनियां से मुख मोड़ो।७।