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९०२ ॥ श्री चीथर शाह जी ॥


पद:-

भजो श्री जानकी पति को जान की जान जो सब के।

नहीं तो अन्त में जमदूत लै दोज़ख में कसि दबकें।

करौ मुरशिद लखौ यारों इस तन में चौदहों तबके।

ध्यान धुनि नूर लै जानो रूप सन्मुख सदा चमके।

बसर तन का मिलै फल यह काल फिर नहिं तुम्हैं धमके।

कहैं चीथर मज़ा लूटौ कहा मानो चलो नमके।६।