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८९९ ॥ श्री बौषल दास जी ॥


पद:-

सतौ गुण एक रस जिस में उसे सतयुग सदा भासै।१।

वही सतगुरु बचन मानै अन्त हरि के चलै पासै।२।

ध्यान धुनि नूर लै पाकर कर्म शुभ अशुभ को नाशै।३।

राम सीता रहैं सन्मुख मरे तन मन के सब डांसे।४।


दोहा:-

राम नाम जो कोइ भजै, तन मन प्रेम लगाय।

सो भव सागर पार हो, बौखल कहैं सुनाय।१।