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८८८ ॥ श्री चम्पा शाह जी ॥


पद:-

करो सतगुरु भजो हरि को खुलैं तब दृगन के टप्पा।१।

नहीं तो अन्त में जमदूत कसि लै जांयगे झप्पा।२।

बृथा तन नाम बिन जाने लगै दोनो जहां ठप्पा।३।

ध्यान धुनि नूर लय पावो रूप सन्मुख कहैं चम्पा।४।