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८७६ ॥ श्री सुरेश जी ॥


दोहा:-

अच्छे बुरे जो शब्द हैं, दुख सुख सब को होय।

या से सोचि बिचारि कै बचन कहौ नर लोय।१।

शंका निःशंका भई सतगुरु दीन्ह्यो ज्ञान।

ध्यान धुनी परकाश लै, सन्मुख कृपा निधान।२।

कह सुरेश हरि को भजौ तन पायो यहि हेतु।

भव सागर के तरन हित है यह सच्चा सेतु।३।


पद:-

बटोही बाट तै कर लो नहीं तो दुःख हो भाई।

जहां से तुम यहां आये वहीं को फिर चलो भाई।

मार्ग सतगुरु से बिन जाने खाव चक्कर यहीं भाई।

अन्त में नर्क को लै जांय जम के दूत कसि भाई।

मार तहँ हर समै परती एक पल कल न दें भाई।५।

कहैं तुम नाम नहि जाना सड़ौ कल्पों यहां भाई।

अभी चेतो कहा मानो गहौ सतगुरु चरन भाई।

मिलै धुनि ध्यान लै रोशन रूप सन्मुख में हो भाई।

देव मुनि हित करैं तुम से मिलैं हंस कर लिपटि भाई।

सुनावैं हरि चरित अनुपम मगन तन मन से ह्वै भाई।१०।

रहौ आनन्द में हर दम बयां क्या तब करौ भाई।

सुरेश यह सत्य कहता है अन्त हरि पुर चलौ भाई।१२।