७९३ ॥ श्री शिताबा जी ॥
पद:-
लखे सिय राम को हर दम वही अबला पुरुष धनि हैं।
मिटी सब तन व मन की गम वही अबला पुरुष धनि हैं।
ध्यान धुनि लय मिली एक दम वही अबला पुरुष धनि हैं।
नूर क्या हो रहा चम चम वही अबला पुरुष धनि हैं।
लखे जिस को उन्हें सब सम वही अबला पुरुष धनि हैं।५।
सकें जग में नहीं वे थम वही अबला पुरुष धनि हैं।
शान्ति अरु हो गये वे नम वही अबला पुरुष धनि हैं।
जीव ऐसे जगत में कम वही अबला पुरुष धनि हैं।
चलें बसुधा पै नहीं धम धम वही अबला पुरुष धनि हैं।
गये हरि नाम में जे रम वही अबला पुरुष धनि हैं।१०।
छुटा देते वही तुम हम वही अबला पुरुष धनि हैं।
शिताबा कह करें क्या जम वही अबला पुरुष धनि हैं।१२।
दोहा:-
स्वामी रामानन्द की चेली मैं अति दीन।
नाम रूप परकाश लय छिन में मोको दीन।१।
कहैं शिताबा आय जग सतगुरु खोजे भाय।
नाहीं तो जन्मै मरै कोटिन चक्कर खाय।२।