७९२ ॥ श्री जहूरा जी ॥
सतगुरु जिसे भेंटाया वह जप कि बिधि को पाया।
फिर तो मज़ा उड़ाया धुनि ध्यान नूर पाया।
लय में जहां समाया सुधि बुधि सबै भुलाया।
सन्मुख में रूप छाया नर तन क लाभ पाया।
कोटिन जनम कमाया उस पर हुई यह दाया।५।
नाहीं तो हरि की माया मनसिज से कह पिटाया।
सुमिरन से प्रेम लाया सो गर्भ में न आया।
कहती जहूरा भाया जो हमने पद सुनाया।८।
पद:-
घनश्याम राधे की छटा को मैं निरखती राति दिन।
जोड़ी मनोहर बाकुड़ी बारह बरस लगभग है सिन।
श्री स्वामी रामानन्द जी किरपा करी मुझ दीन पर।
सुफ़ल जीवन चट हुआ जिमि पड़े पानी मीन पर।
कहती जहूरा जहां में हरि का हि सुमिरन सार है।
सतगुरु बिना खिलता नहीं दिल आयना अतिकार है।६।