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७२६ ॥ श्री दुआ शाह जी ॥


पद:-

पढ़ि सुनि लिखि करता हुआ हुआ, सो बातों का ही सुआ हुआ।

मुरशिद का जिस पै दुआ हुआ, सो जियत नाम गहि मुआ हुआ।

दुनियां के रंग में धुंआ हुआ, सो नर्क में जाय के चुआ हुआ।

तन कष्ट से उसका घुआ हुआ, चौतरफ़ा छाया धुंआ हुआ।

जम पटकैं जैसे रुआ हुआ बेलन ते बेलें पुआ हुआ।५।

जो रीति सनातन छुआ हुआ, सो शान्ति दीन बनि भुआ हुआ।

जो चतुराई का कुँआ हुआ, सो सब चोरन की फुआ हुआ।७।