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७२२ ॥ श्री रंगीले शाह जी ॥


पद:-

कह शाह रंगीले रंग वही हरि रंग चढ़े फिर भंग न हो।१।

सतगुरु करि मन को नाम पै दे सो भक्त जक्त में तंग न हो।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधि लहै जहं रूप रेख क अंग न हो।

सुर मुनि भेटैं घट साज सुनै अमृत पीवै कोई संघ न हो।

सन्मुख सिय राम लखै हर दम कोई सान मान का ढंग न हो।५।

तन छोड़ि के गर्भ न फेरि पड़ै जहं जल भोजन हर गंग न हो।

जिस रीति से सुर मुनि ध्याय रहे वह मार्ग गहौ बे ढंग न हो।

या से भक्तौ अब चेत करो ऊंचे चढ़ि फेरि अपंग न हो।९।