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७१८ ॥ श्री कसीदा शाह जी ॥


पद:-

करो सतगुरु मिलै मारग उठैं आनन्द की लहरैं।

दीनता शांति जब आवै वहैं तब प्रेम की नहरैं।

ध्यान धुनि नूर लै होवै मिटै भव जाल की कहरैं।

सुनो बाजा चखौ अमृत देव मुनि संग में ठहरैं।

जगै नागिन चलैं चक्कर कमल सातौं खिलैं फहरैं।५।

हर समय श्याम श्यामा की छटा छबि सामने छहरैं।

समाधी सहज यह भक्तों शम्भु बिधि शेष हरि दहरैं।

कसीदा शाह कह तन तजि अचल निज धाम में ठहरैं।८।


शेर:-

लखै सब विश्व को निज में विश्व में निज को लखि आओ।

कसीदा कह बिना सतगुरु के यह मारग नहीं आओ।१।

बचन सुनि के जे नहि मानैं लगैं उनके लिए जहरैं।

एक पल कल नहीं मिलि है दिनो दिन होत है गहरैं।२।