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६९४ ॥ श्री खाकी बाबा जी ॥


पद:-

सतगुरु करि सुमिरन सिखौ जियत जाव पाकी।

कर लेव गर्भ रिन अदा पड़ा जो बाकी।

नख पर गिरिवर प्रभु धरै लखौ क्या झांकी।

हर दम सन्मुख तब तुम्हरे जावै टांकी।

सुर मुनि सब जय जय करैं तेरे पितु मां की।५।

अनहद घट में क्या बजै मधुर धुनि वांकी।

अमृत का सागर भरा पिऔ नित छाकी।

बिधि लेख पै मारो मेख सकै को ताकी।

है मन्त्र परम लघु महा मन्त्र की चाकी।

जारी रं रं रं रहै सकत नहिं थाकी।१०।

परकाश ध्यान लय खोलि देय मति बाकी।

फिर कौन सकत करि बन्द गती है काकी।

शिव शक्ती जागि के आलस नींद को हांकी।

सब चलैं चक्र औ खिलैं कमल की फांकी।

यह बिनय करत हैं सब से बाबा खाकी।

सुनि गुनि औ चेति के उर में लीजै आंकी।१६।