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६९३ ॥ श्री मंजारी माई जी ॥ (९)


पद:-

भक्तौं छिमा तुम्हारी नारी।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो मानौ बात हमारी।

हर दम रमन करौ ता के संग पावो तब सुख भारी।

हो सन्तोष पुत्र जब पैदा जियतै देवै तारी।

ता को गोद बिठाय खिलावो मुख चूमौ चुचकारी।५।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से हो जारी।

अमृत पिओ सुनो घट अनहद सुर मुनि मिलैं पुकारी।

नागिन चक्र कमल जगि जावैं महक उड़ै अति प्यारी।

सिया राम की झांकी सन्मुख अद्भुत सकौ निहारी।

तुरिया तीत दशा यह जानो पल भर टरत न टारी।१०।

सहज समाधि इसी को कहते साखी हैं त्रिपुरारी।

बेद पुरान कुरान न जानै रज तम सत से न्यारी।१२।


पद:-

पाप पुण्य औ झूठ सांच से भक्त रहत है न्यारे जी।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जाना तन मन प्रेम में बारे जी।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय कर्म रेख को टारे जी।

अमृत पियै सुनै घट अनहद वंशी शंख सितारे जी।

सुर मुनि मिलैं लिपटि मुख चूमैं बिहंसि गोद बैठारे जी।५।

सन्मुख राम सिया की झांकी निरखै सदा सुखारे जी।

नागिन जगी चक्र सब चालू कमल खिले मतवारे जी।

अन्त त्यागि तन निज पुर राजें हरि के सदा दुलारे जी।८।