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६९३ ॥ श्री मंजारी माई जी ॥ (७)


पद:-

शरन सतगुरु की चल सुमिरन को सिखने में मज़ा क्या है।

साज अनहद को सुनि अमृत के चखने में मज़ा क्या है।

देव मुनि संग करि बैठक औ खेलने में मज़ा क्या है।

नागिनी को जगा सब दिशि बिचरने में मज़ा क्या है।

चक्र सब सोधि के कमलों के खिलने में मज़ा क्या है।५।

ध्यान परकाश धुनि औ लय के मिलने में मज़ा क्या है।

हर समय राधिका मोहन को लखने में मज़ा क्या है।

बिधाता के लिखे अक्षर के कटने में मज़ा क्या है।

दीनता शान्ति की गोदी में सटने में मज़ा क्या है।

सतोगुण का सदा भोजन ही करने में मज़ा क्या है।१०।

दमन इंद्रिन को करि मन ठीक रखने में मज़ा क्या है।

अन्त तन छोड़ि निजपुर चलि ठहरने में मज़ाक्या है।१२।