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६९३ ॥ श्री मंजारी माई जी ॥ (६)


पद:-

शिर को झुका के चलना गुरु का न ख्याल छोड़ो।

परस्वार्थ खूब करना बनना पलाल छोड़ो।

निर्भय सदा बिचरना खाना भि माल छोड़ो।

कटु बैन सुनके सहना गिरने की डाल छोड़ो।

परतीति से न टरना दुविधा की झाल छोड़ो।५।

पर धन कभी न हरना पापों का ताल छोड़ो।

बन करके मोम रहना पत्थर कि नाल छोड़ो।

हठ से कभी न बहना दुख की मसाल छोड़ो।

चुप शान्त जग में रहना बातों कि फाल छोड़ो।

सूरति शबद पै रखना ज़ाया न काल छोड़ो।१०।

तप धन सम्हारि धरना सिद्धिन क टाल छोड़ो।

लय ध्यान नूर परना बिधि लेख भाल छोड़ो।

निज इष्ट सब में लखना घर की न चाल छोड़ो।

अनमोल खाल पहना सुख का न पाल छोड़ो।

तन तजि वतन को चलना रिन का न बाल छोड़ो।१५।